- 79 Posts
- 72 Comments
दुनिया के दो शहरों में जो आतंकवाद के नाम पे खुनी खेल खेला गया इससे इंसानियत शर्मसार हुई है | मैंने इस कट्टर पंथियों पे रोक लगाने के विषय पे अभी दो लेख लिखे थे मुजरिम कोई और सजा किसी और को क्यूँ ? और दूसरा जागो मुसलमानों जागो | अपने पहले लेख में मैंने सवाल किया था कि मुगलों ने ऐसा किया, या कश्मीर में वैसा हुआ कहके अपने पडोसी मुसलमान को गलियाँ देना या उस से बदला लेना कहाँ तक उचित है ? क्यूँ कि जो जुर्म करे उसी को सजा मिलनी चाहिए ना कि मुजरिम के पूरे धर्म वालों को सजा देना चाहिए | इस प्रकार की सजा देना इस्लाम के भी कानून के खिलाफ है बल्कि आप कह सकते हैं की अल्लाह की नज़र में पाप है |पहला नरसंहार अफ्रीकी देश केन्या की राजधानी नैरोबी के एक मॉल में हुआ और ख़बरों के अनुसार हमला करने वाले गिरोह को शिकायत यह है कि केन्या की सेना उस संयुक्त अफ्रीकी सेना में शामिल क्यों है, जो सोमालिया को कट्टरवादी मुस्लिम संगठनों की गिरफ्त से बचाने की कोशिश कर रही है। दूसरा नरसंहार पकिस्तान में इसाईयों पे हुआ और ख़बरों के अनुसार इसका कारण पाकिस्तान में तालिबान के ठिकानों पर अमेरिकी ड्रोन हमलों के कारण ईसाईयों पे हमला हुआ है |
इन दोनों हमलों में मारे जाने वाले बेगुनाहों का दोष केवल इतना था की इन दहशतगर्दों को जिनसे शिकायत थी वे उसी धर्म से सम्बन्ध रखते थे | क्या इस तरह का नरसंहार उचित है ? क्या ऐसे कारणों से बेगुनाह की जान लेना इस्लाम के कानून और कुरान के खिलाफ नहीं ? इसी लिए कहा जाता है दहशतगर्दों का कोई धर्म नहीं होता| दुःख की बात यह है कि इनका इस तरह से बदला लेने का यह तरीका अब हर धर्म के कट्टरवादियों में देखा जा रहा है जिसे रूकना हर इंसान का काम है चाहे वो किसी भी धर्म का हो | बहुत बार अल्पसंख्यक कट्टरवादियों की हरकतों की सजा बहुसंख्यक धार्मिक इंसानों को दी जाती है जिस से दहशतगर्दी को बढ़ावा मिलता है इसलिए ऐसा करने से सभी धर्म के माने वालों को बचना चाहिए | यह जघन्य और नृशंस नरसंहार आज पहली बार नहीं हुआ है बल्कि पकिस्तान , इराक, सिरिया इत्यादि में बार बार होता है | हिन्दुस्तान में दंगो की शक्ल में ऐसे नरसंहार देखे जा सकते हैं |
दूसरा लेख मैंने लिखा था जागो मुसलमानों जागो | जिसमे मैंने यह समझाने की कोशिश की थी कि अल्पसंख्यक दहशतगर्द जिस प्रकार से इस्लाम को बदनाम इस्लाम के नाम पे नरसंहार करके कर रहे हैं उसका जवाब बहुसंख्यक मुसलमान ही बेहतर तरीके से दे सकता है | इसलिए मुसलमानों को चुप नहीं बैठना चाहिए और इन ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने चाहिए क्यूंकि कुरान में कुछ लिखा हो और खुद को मुसलमान कहने वाला कुछ और करता दिखाई दे ऐसे विरोधाभास का अंत केवल मुसलमान ही कर सकता है | गैर मुस्लिमो से भी निवेदन है कि दहशतगर्दी के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले बहुसंख्यक सच्चे मुसलमानों का साथ दें क्यूंकि उनके सहयोग के बिना यह काम आसान नहीं होगा |
Read Comments