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हर इंसान के जीने का अंदाज़ अलग हुआ करता है और यह उसकी परवरिश, तजुर्बे और ज्ञान के अनुसार हुआ करता है. कुछ लोग केवल खुद के लिए ही जीते हैं और कुछ दूसरों के कि खुशी मैं ही ख़ुशी महसूस करते हैं. कुछ एक लोग ऐसे होते है जिनमे वो जज्बा होता है समाज के लिए कुछ भी कर गुजरने का और कुछ कहते हैं जो भी हो रहा है होने दो हमसे क्या मतलब. जो दूसरों कि ख़ुशी मैं सुख पाते हैं वैसे लोगो के लिए तो बस एक इशारे की जरुरत होती है, और वो अपने आप को बदल देते है. मेरा ये लेख उन लोगो के लिए बेहतर साबित होगा.
आज एकल परिवार का युग है संयुक्त परिवार अब लोगों को नहीं भाते. जबकि एकल परिवार एक मजबूरी का नाम है जिसमें दुःख के समय अकेलापन अक्सर असहनीय हो जाया करता है. इस विषय पे कभी और लिखूंगा. आज तो दूसरों कि ख़ुशी के लिए जीने पे कुछ कह देना अधिक सही समझता हूँ
आज वो समय आ गया है कि एक इंसान दूसरे इंसान को बिना किसी फायदे के समय तक देने को तैयार नहीं. बहुत बार तो नमस्कार और सलाम का जवाब भी देना पसंद नहीं करते . मुंबई जैसे महानगरों मैं तो पड़ोसी कि शक्ल महीनो और कभी कभी तो सालों नहीं दिखती. किसी के घर मैं कोई हादसा हो जाए तो पुलिस ही खबर देती हैं पडोसी को नहीं पता चलता. यह एक चिंता का विषय हैं.
यदि एक अच्छे और स्वस्थ समाज को देखना हो तो एक दूसरे के दुःख सुख मैं काम आना और एक दूसरे को मुसीबत और गुमराही से बचाना भी सीखना होगा. आज का इंसान अपनी ख़ुशी और फायदे के लिए ही लोगों से मिलना जुलना पसंद करता है ,दूसरों कि ख़ुशी से उसका कुछ लेना देना नहीं. मैंने बहुत से लोगों से सुना है कि भाई हम तो खुद कि ख़ुशी के लिए लिखते हैं. और इस बात मैं कोई बुराई भी नहीं लेकिन सवाल यह उठता है कि आप एक इंसान हैं, तो दूसरों कि ख़ुशी के लिए, उनकी सामाजिक समस्याओं के निदान के विषय मैं कब लिखेंगे? यदि आप नहीं लिखेंगे तो कौन लिखेगा?
समाज मैं बुराई देख के बहुत से लोग यह कहते पाए जाते हैं भाई हम खुद को सुधार लें यही बहुत है दूसरों को नसीहत क्यों दें. उनको जो अच्छा लगता है करने दो. उसका नतीजा वो खुद भुगतेगा. यह तो वही बात हुई ना कि कोई नासमझ गहरे समुद्र मैं जा रहा है जहाँ वो डूब भी सकता है या उसको नुकसान हो सकता है और हम किनारे खड़े खुश हो रहे हैं. ना खुद उसको समझाते हैं ना दूसरों को समझाने देते हैं. ऐसा इसलिए है की आज हम केवल खुद के लिए जीते हैं. जबकि इंसान का काम हुआ करता है अच्छाई कि राह पे चलो और दूसरों को ग़लत कामो से, बुराई से रोको. आज बहुत से पत्रकार ऐसे भी हैं जिन्होंने हक के लिए लड़ते हुए जान तक गँवा दी और बहुत से ऐसे भी हैं जो बिक गए और ऐश ओ आराम कि ज़न्दगी जी रहे हैं यह कहते हुई कि खुद के लिए जिओ ,हम बेवकूफ नहीं जो दूसरों के लिए लड़े और तकलीफ उठाएं.
यदि कोई बुराई है तो आप खुद को बदलें और समाज मैं भी कुछ ग़लत यदि आप कि नज़रों के सामने हो रहा है तो कम से कम एक बार अवश्य कहें कि यह ग़लत है.
यही इंसान कहलाता है वरना तो भाई अपना अपना अंदाज़ है जीने का . पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना. जिस इंसान की ज़िन्दगी से जीवन मैं समाज को या किसी दूसरे को फायदा ना पहुंचा हो उसका जीना और मरना एक सामान हुआ करता है
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