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वैलेंटाइन डे और प्यार के नाम पे अनैतिक सम्बन्ध

अमन का पैगाम
अमन का पैगाम
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वैलेंटाइन डे का इंतज़ार युवा अलग अलग ढंग से अपने प्रेम का इज़हार करने के लिए बेसब्री से किया करते हैं. वैलेंटाइन डे आते ही कार्डों और चॉकलेटों की बिक्री बढ़ना तो जग जाहिर है, लेकिन कम ही लोगों को यह जानकारी होगी कि इस दौरान कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियों की बिक्री भी बखूबी बढ़ जाती है.
वैलेंटाइन डे आते ही बहुत सी राजनितिक पार्टी के कार्यकर्ताओं की चिल्ल पों शुरू हो जाती है , इस वर्ष भी श्री राम सेना इस दिन को काले दिवस के रूप में मनाएगी लेकिन सच यही है कि वैलेंटाइन डे पे युवाओं को रोक सकना आसान नहीं हुआ करता.
एक सवाल यह भी ज़हन मैं आता है की जब वैलेंटाइन डे प्यार बाँटने का दिन है तो वैलेंटाइन माता पिता, भाई बहन का प्यार क्यों नहीं हुआ करता. यदि ऐसा हो जाता तो क्यों किसी राजनितिक सेना को यह दिन काले दिवस के रूप मैं मानना पड़ता?

वैलेंटाइन डे को लेकर आज के युवा प्रेमी ही सबसे अधिक उत्साहित देखे जा सकते हैं. आज इसके कारण पे भी कुछ विचार किया जाए..
मेरा मानना  है की किशोरावस्था के लड़के-लड़कियों में शादी के पहले के यौन संबंधों में तेजी से वृद्धि होने का मुख्य कारण हमारे समाज में दिनोंदिन खुलापन आना , टेलीविजन कार्यक्रमों तथा फिल्मों में सेक्स एवं अश्लीलता के विस्फोट, समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपे अर्द्धनग्न एवं उत्तेजक चित्र एवं विज्ञापन और विवाह का सही उम्र मैं ना होना है..

आज के युवाओं को १०-१२ साल से ही सेक्स की अच्छी जानकारी होने लगती है और शारीरिक रूप से १३ से १५ के बीच उनकी यौन इच्छा भी जागृत होने लगती है. कुछ यौन विशेषज्ञों का मानना है एक सेहतमंद गर्भधारण के लिए सही उम्र १७-१८ वर्ष के बाद की हुआ करती है और शायद इसी कारण से कानूनी तौर पर लड़कियों के शादी की उम्र 18 वर्ष कर दी गयी.

और आज हमारे समाज मैं तो विवाह हुआ करता है २७ से ३५ वर्ष के बीच और इसका कारण विवाह की वास्तविक आवश्यकता को भुलाकर, विवाह को एक अत्यन्त कठिन बन्धन, दिखावा, प्रतिस्पर्धा तथा घमण्ड करने का एक साधन बना दिया जाना है. समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग ,यह सभी वो रूकावटें हैं जिन्होंने स्वस्थ व स्थाई विवाह के मार्गों को बन्द कर रखा है.

सवाल यह उठता है की क्या वो सेक्स की इच्छा जो १३-१५ साल से ही युवा महसूस करना शुरू कर देता है हमारे शादी की सही उम्र १८-२७ या ३५ कर देने से ख़त्म हो जाएगी?

क्या यह भाषण दे देना काफी होगा की इतनी कम उम्र में इस तरह के कदम वही बच्चे उठाते हैं, जो अपनी वैल्यूज को भूल चुके हैं. हमें अपने बच्चों को संस्कारी बनाना चाहिए. पैरंट्स को कभी भी अपने टीनएज बच्चों को जरूरत से ज्यादा फ्रीडम नहीं देनी चाहिए?

यदि नहीं तो १० से २० वर्ष (शादी होने तक) इस इच्छा को हमारा युवा दबा के रखेगा , यह आशा करना और संस्कार देने के भाषण देना क्या हकीकत से आंखें मोड़ना नहीं है?

पश्चिम ने तो अपने विशेष ऐतिहासिक सांस्कृतिक उद्देश्यों के अंतर्गत धार्मिक धारणाओं, मूल्यों यहॉं तक कि परिवार व विवाह जैसे सामाजिक मूल्यों से मुंह मोड़ लिया है कोई भी सच्चा बुद्धिजीवी या विचारक प्रगतिवाद या अश्लीलता के ख़तरनाक परिणामों को नहीं नकारता. पश्चिम में अवैध तथा बिना अभिभावक के बच्चों की संख्या में वृद्धि के चिन्ताजनक आंकड़ों के समाचार मिलते रहते हैं. अवैध होने के कारण इन बच्चों के मन में घृणा तथा ईष्या भरी होती है। यह बड़े होकर हत्या, हिंसा, अतिक्रमण तथा समाज में भ्रष्टाचार फैला कर अपने मन में छिपे द्वेष को व्यक्त करते हैं. आज हमारे समाज मैं भी कुछ प्रगतिवादी इस बड़े सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अन्तर पर बिना ध्यान दिए हुए ही पश्चिमी संस्कृति के दिखावे के जाल में फॅंस जाते हैं और इसी कारण यह लोग विवाह से दूरी और कठिनाइयों से भाग कर, महिला व पुरूष के संबंधों में स्वतन्त्रता, स्नेह संबंधी भावनाओं और शिष्टाचार की क़ैद से रिहाई को ही प्रगतिवाद, विकास और उन्नति की सॅंज्ञा देने लगते हैं.

क्या ऐसा नहीं लगता की हम सेक्स की सही उम्र की हकीकत से आँखें मोड़ के अपने युवाओं को शादी से पहले नाजायज शारीरिक संबध बनाने के लिए मजबूर करते हैं और इसका इलज़ाम भी उन्ही युवाओं पे रखते हैं.

भाग के शादी कर लेना, अनैतिक संबंधो के नतीजे मैं गर्भधारण और चोरी-छिपे गर्भपात की खबरें आज आम बात हो गयी है. आज यदि हम ऐसे समाज मैं रह रहे हैं , जहाँ हमारे युवाओं पे पश्चिमी सभ्यता का असर होने के अवसर अधिक हैं ऐसे मैं हमें विवाह की वास्तविक आवश्यकता, विवाह की सही उमर की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है. स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार गर्भधारण की सही उम्र 18-35 वर्ष है और हम हैं इस उम्र के बीत जाने पे ही शादियाँ किया करते हैं.

इस से अधिक दुःख की क्या बात हो सकती है की आज जब एक लड़की अनैतिक संबंधों के लिए लड़का तलाश करती है तो, लड़कों की कमी नहीं होती, बल्कि आपस मैं झगडे तक होने लगते हैं, लेकिन जब एक लड़की विवाह के लिए लड़का ढूँढती है तो, समाज में वर्ग की समस्या, रोज़गार की स्थिति ,दहेज़ की मांग उसके विवाह मैं बाधा बन जाती है और ऐसा लगता है की लड़कों का अकाल पड़ गया है.

विवाह का प्रचलन, और इसका सही उम्र मैं होना समाज के कल्याण की ज़मानत है इसलिए इस संबंध में की जाने वाली उपेक्षा का नतीजा आज अनैतिक संबंधों की दर मैं बढ़ोतरी के रूप मैं दिखाई दे रहा है.

इस संबंध में जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता है वो विवाह की भावना व नियमों का ज्ञान, विवाह का सही उम्र मैं होना और विवाह की रीति-रिवाजों और नियमों से कुरीतियों को अलग किया जाना है और इस समस्या हो कैसे हल किया जाए इसपर ईमानदारी से सोंचने की आवश्यकता है.

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