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२० सफ़र चेहलुम इमाम हुसैन (ए.स)

अमन का पैगाम
अमन का पैगाम
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कुछ दिन पहले मैंने इमाम हुसैन (ए.स) को श्रधांजलि देते हुए एक पोस्ट मैं यह बताने कि कोशिश कि थी कि धर्म कोई भी हो जब यह राजशाही , बादशाहों, नेताओं का ग़ुलाम बन जाता है तो ज़ुल्म और नफरत फैलाता है और जब यह अपनी असल शक्ल मैं रहता है तो, पैग़ाम ए मुहब्बत “अमन का पैग़ाम ” बन जाता है.
10 मुहर्रम 61 हिजरी को इमाम हुसैन (ए.स) को ज़ालिम बादशाह यजीद ने भूखा प्यासा शहीद कर दिया लेकिन नाम ए हुसैन अमर हो गया और आज भी जब मुहर्रम का महीना आता है तो मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मो के लोग अपनी श्रधांजलि पेश करते हैं और मुसलमान तो यह ग़म ऐसा मनाता है जैसी आज ही किसी ने इमाम को शहीद किया है. १० मुहर्रम के बाद अगला महीने २० सफ़र को मुसलमान इमाम हुसैन का चालिस्वां मनाते हैं और इस दिन इमाम हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों की याद मनाई जाती है, उन्हें श्रद्धान्जली अर्पित की जाती है। धर्म एवं मानवता के लिए दिए गए उनके बलिदानों को याद किया जाता है। चेहलुम के दिन,पैग़म्बरे इस्लाम(स) के साथी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी फ़ुरात नदी के किनारे गए, स्नान किया और स्वँम को पविज करके इमाम हुसैन(अ) की क़ब्र के दर्शन को पहुँचे। वे इमाम हुसैन(अ) के पहले ज़ाएर अर्थत दर्शन कर्ता थे। जिस समय इमाम हुसैन(अ) की क़ब्र पर उन्होंने हाथ रखा तो बेहोश हो गए। जब होश में आए तो इमाम हुसैन (अ) और सभी शहीदों को सलाम किया। कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इमाम हुसैन (अ) के परिजन भी चेहलुम के दिन कर्बला पहुँचे थे। वे ऐसी स्थिति में कर्बला के शहीदों के दर्शन को पहुँचे थे कि यह जानते थे कि जो ख़ून निर्थक ही धरती पर बहाया गया है वो विजयी है हद्दयों में उत्साह भर दता और समाजों को जीवन प्रदान करता है।

इमाम हुसैन (अ) का आन्दोलन मानव इतिहास की एक अमर घटना है। सन 61 हिजरी क़मरी में दसवीं मोहर्रम को जो कुछ कर्बला की धरती पर हुआ, वह केवल एक असमान युद्ध और एक दुख भरी कहानी नहीं थी । ये घटना सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध थी । कर्बला की घटना में यज़ीद की सिर से पैर तक शस्त्रों से लैस सेना ने इमाम हुसैन (अ) और उनके 72 वफ़ादार साथियों को घेर लिया और अन्तत: सबको शहीद कर दिया। यहाँ तक कि शत्रु ने उनके सिर काट कर उन्के पवित्र शवों को कर्बला के मरुस्थल में छोड़ दिया।

इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब (स) और इमाम हुसैन (अ) के सुपुत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) को अन्य महिलाओं और बच्चों के साथ क़ैदी बनाया गया ।

ऐसे समय में शत्रु स्वंय को विजयी समझ रहा था किंतु समय बीतने के इतिहास से सिद्ध हो गया कि ऐसा नहीं था। इतिहास के अनुसार कर्बला की घटना के कुछ ही समय बाद, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषणों ने जन चेतना में अत्याधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्हों ने इस वास्तविकता को स्पष्ट किया कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने धर्म के पुर्नजागरण, समाज सुधार और लोगों को अत्याचारी व क्रूर शासकों के चंगुल से छुड़ाने के लिए आंदोलन छेड़ा था। इमाम हुसैन का उद्देश्य , अपने उस कर्तव्य का पालन था जिस का वह पैग़म्बरे इस्लाम के धर्म के प्रति आभास कर रहे थे। यज़ीद के दरबार में, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के भाषण ने अत्याचारी शासक की सत्ता के स्तंभों को हिला कर रख दिया जब उन्हों ने कहा: हे यज़ीद! आंखों से आंसू टपक रहे हैं और सीनों में दुख की ज्वाला धधक रही है, ईश्वर की सौंगध तू हमारे नाम को मिटा और हमारे संदेश को समाप्त नहीं कर सकता, हे यज़ीद! तेरी शक्ति व संकल्प नष्ट होने वाला है और तेरा समय बीतने ही वाला है।

हज़रत ज़ैनब के भाषणों के कारण, उमवी शासक को सत्ता पर अपनी पकड़ कमज़ोर पड़ती दिखाई देने लगी इसी लिए उस ने जन चेतना को रोकने के लिए आदेश दिया कि उन्हें तथा उन के साथ बंदी खोजी हर युग के मनुष्य के लिए शिक्षाप्रद हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लड़ाई के मध्य भी लोगों को उपदेश दिया और ईश्वर से अपनी प्रार्थनाओं द्वारा, अपने संकल्प व इरादे की पवित्रता व अपनी सदभावना को सिद्ध किया। इन विशेषताओं ने उन के आंदोलन और उन के मार्ग को इतिहास में अमर कर दिया।

उच्च मूल्य इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में जगह जगह नज़र आते हैं, इमाम हुसैन ने एक सुंदर वास्तविकता का चित्रण किया और वह यह है कि जब भी अत्याचार व अपराध व बुराईयां मानव के समाजिक जीवन पर व्याप्त हो जाएं और अच्छाइयां और भलाइयां उपेक्षित होने लगें तो उठ खड़े होकर संघर्ष करना चाहिए। समाज में जीवन के नये प्राण फूंकना चाहिए और सार्वजनिक हितों और आध्यात्मिक मूल्यों के लिए व्यक्तिगत हितों को त्याग देना चाहिए भले ही इस मार्ग में मनुष्य का प्राण, धन व संपत्ति ख़तरे में पड़ जाए इमाम हुसैन चाहते थे कि अज्ञानता व भय के अन्धकार में सोई हुई अंतररात्माओं को जगा दें इसी लिए हम देखते हैं ऐसे बहुत से लोग जिन्हों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कर्बला में सहायता नहीं की थी , आशूर की घटना के बाद जाग गये और उन में से बहुत से लोगों ने अत्याचारियों के विरुद्ध आंदोलन भी छेड़ा।

आशूर की घटना और कर्बला का आंदोलन सदैव ही विश्व के स्वतंत्रता प्रेमियों के ध्यान का केन्द्र रहा है। यह घटना एक स्थाई व निंरतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है जो समस्त समाजों और मतों में भूमिका निभा सकती है। धर्म पर विश्वास रखने वाले बलिदानी अल्पसंख्यकों द्वारा धर्म भ्रष्ट व संसार प्रेमी बहुसंख्यकों के विरुद्ध संघर्ष और इस अल्पसंख्यक गुट के कारनामों की याद, मनुष्य में शौर्य व साहस जगा देता है।

यह कहा जा सकता है इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जिस मार्ग का चयन किया था वास्तव में वह एक प्रकार से समस्त ईश्वरीय दूतों के सुधार कार्यक्रमों का क्रम था। इतिहास में जब भी अराजकता व पथभ्रष्टता देखी गयी , कुछ ईश्वरीय दूतों ने संघर्ष का बीड़ा उठाया और समाज सुधार का काम आंरभ किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का वर्तमान युग के लिए यह संदेश है कि आज इस्लामी जगत और विश्व को जिन समस्याओं का सामना है हमें उन के सामने मौन धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार से वर्चस्वादी शक्तियों को मनमानी का अवसर मिल जाएगा। आज हम ऐसे विश्व में जीवन व्यतीत कर रहे हैं जिस में सत्य व असत्य के मध्य संघर्ष यशावत जारी है। ऐसे काल में जब असत्य की पुजारी और वर्चस्वादी शक्तियां, अन्य राष्रट्रों की सीमाओं संस्कृतियों, धर्मों और मूल्यों का आतिक्रमण कर रही हैं और धौंस व धमकी व अतिग्रहण द्वारा अपने वर्चस्वादी हितों की पूर्ति के प्रयास में हैं इमाम हुसैन का अनुसरण करना चाहिए साहस के साथ प्रतिरोध करना चाहिए और चेतना व साहस का मार्ग राष्ट्रों को दिखाना चाहिए। संभव है कुछ समय के लिए वास्तविकता, छिप जाए और सत्य प्रेमियों का दमन होने लगे किंतु ईश्वर का नियम यह है कि असत्य का नाश हो और सत्य प्रगतिशील व सदैव रहे। जैसाकि आज हम शताब्दियां बीत जाने के बाद भी देख रहे हैं कि इमाम हुसैन मानवता के मार्गदर्शक व न्यायप्रेम पर आधारित आंदोलनों के आदर्श हैं और उन का नाम और उन की याद ह्रदयों में उत्साह व शक्ति भर देती है।

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