Menu
blogid : 2181 postid : 117

उद्देश्य पूर्ण तथा सुव्यवस्थित प्रशिक्षण द्वारा बच्चों मैं शिष्टाचारिक गुणों का पोषण किया जा सकता है

अमन का पैगाम
अमन का पैगाम
  • 79 Posts
  • 72 Comments

बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं परन्तु यदि वे उदार भी हों तो और अधिक अच्छे लगने लगते हैं।
क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप अपने बच्चे की कन्जूसी पर चिन्तित हुए हों? और आप ने यह सोचा हो कि इसे किस प्रकार उदार बनाया जा सकता है? विशेषकर कि जब आप स्वंय उदारवादी हों।
अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे उदारता को अपने माता- पिता से सीखते हैं। जो बच्चे उदार परिवार में बड़े होते हैं वे निश्चित रूप से यह सीख लेते हैं कि किस प्रकार अपने मित्रों या सहकर्मियों के साथ उदारता पूर्ण व्यवहार करें और दूसरों की सहायता करें और किसी की धन सम्पत्ति पर निगाहें न गाड़े। यध्यपि आज के स्वार्थी और क्रूर विश्व में हम मनुष्यों को अपनी विभूतियों का मूल्य ज्ञात होना चाहिए परन्तु उनको ग़रीब लोगों के साथ बॉंट कर हम जीवन का अधिक आनन्द उठा सकते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि हम इस स्वार्थी विश्व में अपने बच्चों को किस प्रकार से दयालु और उदार बना सकते हैं?
यद्यपि वर्तमान युग में बच्चों को यह सिखाना बहुत कठिन है परन्तु असम्भव नहीं है।उदार और अपनी चीज़े दूसरों को देने वाले बच्चे केवल अपने हित के बारे में ही नहीं सोचते बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों तथा मित्रों को भी महत्व देते हैं। इन बच्चों ने सीखा है कि उदारता तथा भलाई से दूसरों को हर्ष प्राप्त होता है। बच्चों को उदारता सिखाने के लिए माता – पिता को चाहिए कि बचपन से ही उन्हें सामूहिक जीवन का महत्व बताएं और उन्हें यह बताएं कि कोई भी मनुष्य जीवन में अकेला नहीं रह सकता। जब भी कोई भलाई करता है तो न केवल यह कि वो स्वंय को पहले से अधिक सक्षम पाता है बल्कि उसमें आत्म सम्मान की भावना भी पनपती है। अधिकॉंश बच्चे लगभग ३ वर्ष की आयु से ही अपनी समरस्ता तथा दया की भावना का प्रदर्शन करने लगते हैं।
यही वो समय है कि जब बच्चा उदारता की भावना को सीखता है।उदार तथा दयालु बच्चे शीघ्र यह सीख लेते हैं कि अपने खाने की वस्तुओं, कपड़ों तथा खिलौनों को अपनी आयु के दूसरे बच्चों के साथ बाटना चाहिए। इस प्रकार वे मित्रता तथा सामाजिक संबंधों को विकसित करते हैं। अलबत्ता याद रखिए कि जो चीज़ें बच्चों को बेहद प्रिय हैं उन्हें दूसरों को देने पर उन्हें कभी विवश न करें।
अधिकांश बच्चे अपनी चीज़ों को दूसरों के साथ बॉंटने में रूचि रखते हैं परन्तु यदि स्वंय इसके लिए पहल करें तो हमें उनकी सहायता करनी चाहिए।सभी बच्चे स्वाभविक रूप से एक विशेष आयु में अपने खिलौने तथा चीज़ें दूसरों को नहीं देते हैं। इस लिए उस समय तक धीरज रखिए जब अचित समय आ पहुंचे। अधिकॉंश लोग यह समझते हैं कि बच्चे ३,४ वर्ष की आयु तक बहुत से मामलों को ठिक से नहीं समझते हैं।
साधारणत: १८ महीने से कम के बच्चे अपनी चीज़ें दूसरों को दे देते हैं परन्तु फिर उसे वापस ले लेते हैं। वस्तुत: इस आयु में बच्चों को अपनी चीज़ों में दूसरों को भागीदार बनाने के बारे में कोई ज्ञान नहीं होता। आप उसके हाथ में चीज़ें दें और उसे वापस लेकर बच्चे की प्रतिक्रिया देखें। बच्चा जैसे ही स्वामित्व का अर्थ समझ लेगा अपनी चीज़ वापस नहीं करे गा। यदि अपने बच्चे से पूछे बिना आप अपने बच्चे के खिलौने अपने अतिथि के बच्चे को दे देंगे तो उसे बहुत बुरा लगेगा। परन्तु यही काम यदि उससे पूछ कर और उसकी इच्छा से किया जाए तो बच्चा एक प्रकार के अमिभान का आभास करेगा और प्रसन्न होगा।
बच्चे धीरे धीरे दूसरों की भावनाओं तथा स्नेह को समझने लगते हैं और उनका सम्मान करते हैं। परन्तु उद्देश्य पूर्ण तथा सुव्यवस्थित प्रशिक्षण द्वारा उनमें शिष्टाचारिक गुणों का पोषण किया जा  सकता है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh