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धर्म के नाम पे झगडे क्यों हुआ करते हैं ?

अमन का पैगाम
अमन का पैगाम
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मैंने अपनी पिछली पोस्ट मैं कहा था की हर धर्म ,किसी भी हाल मैं  इंसानों मैं नफरत फैलाने के खिलाफ है, तो हम क्यों नहीं अपने अपने धर्म को मानते हुए ,एक दूसरे के साथ प्रेम और शांति से रह सकते? धर्म से भागो नहीं, बल्कि अपने धार्मिक ज्ञान को बढाओ और सभी धर्म के बारे मैं उनकी धार्मिक किताबों से जानो, तब कहीं जा के हृदय पवित्र होगा और जब इन्सान का हृदय पवित्र होगा  तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा और  वह हर बुरे काम से और मानवता के विरुद्ध कोई भी काम करने से बचेगा.

धार्मिक ज्ञान को बढ़ाना बुरा नहीं, इसके संदेशों को बताना, बुरा नहीं. लेकिन हम ग़लती कहां कर जाते हैं, इसका उदाहरण देने की कोशिश कर रहा हूँ.

हम हकीकत मैं biological हिन्दू , मुसलमान या ईसाई  बन के रह गए हैं. हम जिस घर मैं पैदा हुए वही हमारा धर्म को गया हमने इस बात की आवश्यकता ही नहीं समझी की हम सभी मौजूद धर्म के बारे मैं खुले दिल से पढ़ें, सबको समझें और फिर जो सही लगे उस को मानें. नतीजा यह हुआ की हमारा धार्मिक ज्ञान  अधुरा और अपरिपक्व रहा.

यही कारण है की हम अपने धर्म की अच्छी नसीहतों को ठीक से बता भी नहीं सकते. हाँ हम अपने धार्मिक होने का  सुबूत दूसरे के धर्म पे ऊँगली उठा के देना सीख गए क्यों की यह आसान हुआ करता है.

अपने धर्म को समझो, और उसके बारे मैं लोगों को बताओ और अपने धर्म की उन बातों पे अधिक ध्यान दो जो जनहित मैं हों. यहाँ तक कोई आपत्ति किसी को नहीं होगी.

कुछ लोग यह भी कहने की कोशिश करते हैं की , उनके धर्म के बारे मैं दूसरे धर्म के ऋषिओं , पैगम्बरों , ने बताया था , और इस बात से वोह यह साबित करना चाहते हैं की, उनका ही धर्म सच्चा है. यदि उनकी दलील सच मैं दूसरे धर्म मैं मिल रही है और उनका उदाहरण सत्य पे आधारित है, तो ज्ञानी वहां सवाल जवाब कर सकता है. हाँ अज्ञानी वहां झगडे करता है.यहाँ भी झगडे की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि सत्य एक ही होता है ज्ञानी अपने ज्ञान के अनुसार उसको अलग अलग तरीके से बयान किया करता है. और किसी का भी ज्ञान एक सामान नहीं होता.

लेकिन अगर इस तरीके को अपनाने मैं उदाहरण के लिए झूटी दलील पेश की गयी है तो नतीजा झगडे और फसाद के सिवाए और कुछ नहीं होगा. इस तरीके का इस्तेमाल केवल ज्ञानी लोगों को ही करना चाहिए. कम धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान रखने वाले इस से दूर रहें तो ही बेहतर.

कुछ लोग अपने धर्म के बारे मैं तो कुछ भी नहीं बताते, ना ही अपने धर्म के किसी उपदेश का ज़िक्र करते, बस उनका काम दूसरों के धर्म मैं बुराइयां निकालना , उसका मज़ाक  उडाना हुआ करता है. यह अधर्म है और यह इंसानियत का खुले आम क़त्ल है. इस बात की इजाज़त किसी भी धर्म मैं मौजूद नहीं.

हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की , किसी इंसान की किसी बुराई को देख के उनके धर्म को बुरा भला नहीं कहना चाइये. क्यूँ की उसका धर्म उसकी जाती बुराई के लिए ज़िम्मेदार नहीं और ऐसी बातों से उस धर्म विशेष के सभी मानने  वालों को बुरा लगेगा और नतीजे मैं झगडे होंगे. इस तरीके के खिलाफ इस समाज मैं रहने वाले हर इंसान को उठानी चाइये.

यह हर जागरूक और शांति पसंद ब्लोगेर का धर्म है की ऐसे नफरत के सौदागरों के खिलाफ अपने ब्लॉग से  आवाज़ उठाए, और अपने ब्लॉग के ज़रिये इंसानियत बचाओ अभियान चलाए. कुछ लोग यह कह  के ज़िम्मेदारी से हाथ झाड लेते हैं, की हमें जो पसंद नहीं आता , हम वहां नहीं जाते, यह सही हल नहीं. आप के ना जाने से नफरत का फैलना  नहीं रुकता. आप वहां ना जाएं लेकिन अपने ब्लॉग के ज़रिये नफरत फैलाने वालों के खिलाफ अवश्य आवाज़ उठाएं. जो इंसान केवल अपने बारे मैं सोंचता है वोह एक मृत  सामान है. यह ब्लॉग जगत हमारे समाज से अलग नहीं है अगर समाज मैं शांति चाहिए तो सबको मिल के इसका प्रयास करना होगा.

शर्म आनी चाइये उन लोगों को जो किसी धर्म विशेष के लोगों को बुरा भला कहते हैं, उनके तरीकों और धार्मिक ग्रंधों का मज़ाक बनाते हैं और इस के लिए झूट का सहारा लेते हैं. झूट  फरेब को खुद का धर्म बता के यह लोग क्या खुले आम इंसानियत का मजाक नहीं उड़ा रहे? क्या यह खुले आम नफरत की सौदागरी नहीं कर रहे.  इन लोगों को हर अमन का पैग़ाम देने वाला फरेबी लगता है और हर झूठा फरेबी इमानदार दिखाई देता है.

मैंने अपनी इस पोस्ट मैं, उन बातों को सामने लाने की कोशिस की है, जिनके चलते धार्मिक विषयों पे बात चीत, जिद और झगडे का रूप ले लेती है.

आप सब भी  इस  विषय  पे प्रकाश डालें , की कैसे शांति संभव है? या क्या कारण है, धर्म के नाम पे झगड़ों का?

समाज को आज़ाद इंसान बनाया करते हैं

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