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इंसान के दो चेहरे

अमन का पैगाम
अमन का पैगाम
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हम जिस समाज में रहते हैं उसमें इंसानों के अक्सर दो चेहरे दिखने में आते हैं.  अमीर अपने काले धन में से राई बराबर धन किसी संस्था में दे के टैक्स भी बचाता है और दानवीर भी बन जाता है,  मुस्लमान केवल दाढ़ी रख के समझता है की वोह सच्चा मुसलमान हो गया , हिन्दू तिलक लगा के धार्मिक होने का दावा करता है. जब मामला दौलत का आ जाए ,झूटी शान का  आ जाए तोह न दाढ़ी का ख्याल रहता है और न तिलक का.
लोग बड़े बड़े लेख़ और बड़ी शानदार कविताएँ लिखते हैं, सामाजिक बुराइयों पे, इन्सानिअत पे, माता पिता की इज्ज़त पे, लेकिन अधिकतर पाया गया है की यही लोग अपनी ज़िन्दगी में जो कहते हैं, उस से अलग हुआ करते हैं.
हम यह कैसे समाज में रह रहे हैं जो सच क्या है, अच्छा क्या है यह जानता तो है लेकिन उस राह पे चलना पसंद नहीं करता . आज का इंसान आज़ाद प्रवृत्ति का होता जा रहा है. वोह  किसी भी कानून से बंध के नहीं रहना चाहता. अपनी ज़रुरत, ऐश ओ आराम,अपने ख्यालात और अपने कानून इसी में बंध के जीता है आज का मानव.
अगर देश , धर्म , और समाज के कानून, इसके अपने ख्यालात, सहूलियतों और कानून के मुताबिक ना हुए  तो यह दो चेहरे वाला बन जाता है. सामने से , सामाजिक, धार्मिक, और अंदर से ठीक इसके उलट.
हर एक धर्म के मानने वालों के पास , उनके धर्म के  कानून की, उसूलों की, कोई ना कोई किताब हुआ करती है, उन्ही के, भगवन के अवतारों , इमाम, खलीफा, नबी पैग़म्बर के किरदार की मिसाल हुआ करती हैं ;जिनपे उसे चलना होता है और इसके साथ साथ नरक और स्वर्ग पे यकीन भी करना होता है . फिर भी  खुद को धार्मिक कहने वाला  इंसान उन सब  पे  सबक़त लेता है, अपनी सहूलियतों के कानून पे चलता है. क्यों ?
आप देख सकते हैं की मुसलमान औरतों के लिए , सूरा अल अहज़ाब (५९)में ,सूरा ए नूर (३१) में, साफ़ साफ़ हुक्म है की, अपने बालों को और जिस्म को ग़ैर (ना महरम) मर्द से छिपाओ. और अगर ऐसा ना किया तो , खुद भी गुनाह किया, और दूसरों को भी गुनाह पे अमादा किया. इसकी सजा मिलेगी. जो यकीनन नरक है.
फिर भी, आप अपने आस पास देख लें, ना जाने कितनी औरतें, जो अल्लाह को सबसे बड़ा भी  कहती  हैं, और, आज़ादी के नाम पे, पैसे के घमंड में, पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में. अल्लाह के इस हुक्म की खुले आम नाफरमानी  भी  करती हैं. क्या यह खुद को अल्लाह से अधिक प्रभावशाली, और समझदार समझना नहीं है?
इस्लाम नाम है एक कानून का जिस को बनाने   वाला स्वम अल्लाह है. अगर आप का ईमान उस खुदा पे है, तो उसके बनाए  हर कानून को मानो, या फिर इनकार कर दो मानने से.. यह क्या बात  हुई की हैं मुसलमान लेकिन अल्लाह के कानून को नहीं मानेंगे? में उन लोगों की बात नहीं कर रहा, जो नाम के मुसलमान हुआ करते हैं, यह उन लोगों की बात है जो खुद को सच्चा मुसलमान कहा करते हैं,अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी कर ने के बावजूद.
इस्लाम में कहा गया है किसी बेगुनाह की जान ना लो लेकिन आज ऐसे ही दो चेहरे वाले मुसलमानों की वजह से , मुसलमान दहशत गर्द कहा जाने लगा. इस तरह के दो चेहरे वाले लोग हर समाज में, हर देश में ,हर धर्म के मिल जाएंगे.
ज़बान  से  कह  भी  दिया  ला  इलाहा  इल्लाह  तो  क्या  हासिल दिल -ओ -निगाह  मुस्लमान  नहीं  तो  कुछ  भी  नहीं “ ..इकबाल ’
खुद  बदलते  नहीं  कुरान  को  बदल  देते  हैं ,हुए   किस  दर्जा  फकीहाने  हरम बे  तौफिक …इकबाल ’
आज इसी दो चहेरे का इंसान अपनी इसी बुराई  की वजह से निराशा का शिकार होता जा रह है. अमन चैन, नींद ,सुकून ,इंसानियत यह सब खो के हमने पाया क्या? इस पर  ग़ौर ओ फ़िक्र  की ज़रुरत है

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